(१) हंस वाहिनी मात, वन्दन करता चरण में !
दो मुझको अनुपात, मनसा पूरण कर सकूं !
*
(२) क्षण है बडा.महान, कहते साधक वीर जी !
बीत गया जो याम, कब आता मुड.कर "सहन" !
*
(३) देती दिव्य प्रकाश, उज्जवल आभा ग्यान की !
करती तम का नाश, सच्ची मन की साधना !
*
(४) अंकुरित होते भाव,सदभावों के जो "सहन" !
देते सदा सुझाव, करो कर्म तुम सत्य का !
*
(५) ईर्ष्या का हर काम, हरता है विश्राम को !
होता नित संग्राम, चैन कहां फ़िर वीर जी !
*
(६) ऎसा दो आधार, हे बलशाली वीरवर !
कर ल्यूं बेडा.पार, अनाशक्ति के योग से !!
*
(७) अनाचार की लहर, देती गोता भंवर में !
मर्यादा का पहर, कभी न छोड़ो भ्रात जी !!
*
(८) आदर से लाचार, कपटी मन टिकता नहीं !
खो देता सुविचार, पृष्ठ पलट कर नीति का !!
*
(९) इन्गित करती आंख, चाल सिखाती बेतुकी !
कहां बचेगी साख, मान्य जनो की फ़िर "सहन"!!
*
(१०) उस धरती पर वीर, तूर न बजते जीत के !
हट जाते रणधीर, जहां कहीं संग्राम से !!
*
(११) अपने पन की बात, रहती है नित अधर पर !
खुशियों भरी प्रभात, करती हर्षित प्राण को !!
*
(१२) अपने हित की बात, करते हैं जो लोभ वश !
क्या देंगे सौगात, होगा उनसे क्या भला !!
*
(१८) एक रूप है कंस , एक रूप गोपाल का ! एक लगाता दंश, एक लुटाता प्यार को !!
(१९) आशा का विश्राम, रहता है सत्कर्म में ! करो सोचकर काम, हर्षित मन से "सहनजी"!!
(२०) इधर उधर की बात, हठधर्मी करते "सहन "! देती मन को संताप, मार्ग रोके धर्म का !!
(२१) उठ जाती परतीत, मानव की जब जगत में ! कहीं न होती जीत,जीवन पथ पर "सहनजी"!!
(२२) आशा है बेकाम, करणी के फल देख लो ! कहाँ पकेंगे आम, झाड़ खड़े जब आक के !!
(२३) कामी, काग,हराम, भगत बना है बुगलिया ! मन दोनों का श्याम,ऊपरी रंग न एकसा !!
दो मुझको अनुपात, मनसा पूरण कर सकूं !
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(२) क्षण है बडा.महान, कहते साधक वीर जी !
बीत गया जो याम, कब आता मुड.कर "सहन" !
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(३) देती दिव्य प्रकाश, उज्जवल आभा ग्यान की !
करती तम का नाश, सच्ची मन की साधना !
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(४) अंकुरित होते भाव,सदभावों के जो "सहन" !
देते सदा सुझाव, करो कर्म तुम सत्य का !
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(५) ईर्ष्या का हर काम, हरता है विश्राम को !
होता नित संग्राम, चैन कहां फ़िर वीर जी !
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(६) ऎसा दो आधार, हे बलशाली वीरवर !
कर ल्यूं बेडा.पार, अनाशक्ति के योग से !!
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(७) अनाचार की लहर, देती गोता भंवर में !
मर्यादा का पहर, कभी न छोड़ो भ्रात जी !!
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(८) आदर से लाचार, कपटी मन टिकता नहीं !
खो देता सुविचार, पृष्ठ पलट कर नीति का !!
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(९) इन्गित करती आंख, चाल सिखाती बेतुकी !
कहां बचेगी साख, मान्य जनो की फ़िर "सहन"!!
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(१०) उस धरती पर वीर, तूर न बजते जीत के !
हट जाते रणधीर, जहां कहीं संग्राम से !!
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(११) अपने पन की बात, रहती है नित अधर पर !
खुशियों भरी प्रभात, करती हर्षित प्राण को !!
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(१२) अपने हित की बात, करते हैं जो लोभ वश !
क्या देंगे सौगात, होगा उनसे क्या भला !!
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(१३) आए जो भी कष्ट, सहन करो सदभाव से मानव हैं वे श्रेष्ठ ,हर लेते जो ताप को !
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(१४) आए परिजन द्वार, तन-मन से स्वागत करो ! करने से सत्कार, साख जमे परिवार की!! (१५) असल नक़ल का फेर, चला "सहन" इस जगत में ! बड़ा गजब का घेर, खींचातानी कर रहा !!
(१६) आपस के गुणदोष, चलते घर घर भ्रातजी ! क्यों करता अफसोस, देख विरोधाभास को!!
(१७) ओछेपन की बात, ओछी संगत से मिले ! झर जाते हैं पात, आते ही पतझार के !!
(१८) एक रूप है कंस , एक रूप गोपाल का ! एक लगाता दंश, एक लुटाता प्यार को !!
(१९) आशा का विश्राम, रहता है सत्कर्म में ! करो सोचकर काम, हर्षित मन से "सहनजी"!!
(२०) इधर उधर की बात, हठधर्मी करते "सहन "! देती मन को संताप, मार्ग रोके धर्म का !!
(२१) उठ जाती परतीत, मानव की जब जगत में ! कहीं न होती जीत,जीवन पथ पर "सहनजी"!!
(२२) आशा है बेकाम, करणी के फल देख लो ! कहाँ पकेंगे आम, झाड़ खड़े जब आक के !!
(२३) कामी, काग,हराम, भगत बना है बुगलिया ! मन दोनों का श्याम,ऊपरी रंग न एकसा !!